गुलों से आशिक़ी का हक़ फ़क़त क्या आप ही को है |
सुनहरी ज़िंदगी का हक़ फ़क़त क्या आप ही को है ||
कभी भी रूठ सकता है हमारा दिल भी दिल ही है |
अरे नाराज़गी का हक़ फ़क़त क्या आप ही को है ||
इबादतगाह में जाने की मुझको ही मनाही क्यों |
ख़ुदा की बंदगी का हक़ फ़क़त क्या आप ही को है ||
बला से आपकी सारे ज़माने में अन्धेरा हो |
यहाँ बस रोशनी का हक़ फ़क़त क्या आप ही को है ||
रहें सब आपसे कमतर कभी ऊंचा न उठ पायें |
बताओ अफ़सरी का हक़ फ़क़त क्या आप ही को है ||
ठिठोली की ज़रा सी तो तुनक कर दूर जा बैठे |
किसी से दिल्लगी का हक़ फ़क़त क्या आप ही को है ||
सलीक़ा कुछ तो होगा ‘सैनी’को भी शेर कहने का |
अदब में शायरी का हक़ फ़क़त क्या आप ही को है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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