Tuesday, 17 April 2012

जब से तुम्हारे इश्क़ में


जब  से  तुम्हारे  इश्क़   में   मैं  मुब्तिला  हुआ |
काँटा  सभी  की  आँख  का  तब  से  बना  हुआ ||

मंज़ूर    यार   को    न   मेरा    फ़ैसला      हुआ |
साझे   के   कारोबार   का  ये  सिलसिला  हुआ ||

क्या  कोई  अब  मिलेगा  यहाँ  पर  तुम्हे  सुबूत |
गुज़रा  है  इतना  वक़्त   ये  जब  हादिसा  हुआ ||

क्यूँ अब तलक मिली नहीं मुज़रिम को  वो सज़ा |
मुद्दत  हुई   है    जिसका    कभी   फ़ैसला   हुआ ||

अब   आ    गया   तुम्हारी    पनाहों में आख़िरश |
मैं    बेवफ़ा    नहीं  था    तुम्हे    वहम  सा  हुआ ||

तूफ़ान    सा     उठा     दिया    दिल  ने शरीर में |
दो-चार   पल    को    आपसे   मैं क्या जुदा हुआ ||

जो       उनके   हुस्न  पर  कहा है एक –आध शेर |
‘सैनी’  तुम्हारा       शेर   वही   काम   का    हुआ ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 
     

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