जब से तुम्हारे इश्क़ में मैं मुब्तिला हुआ |
काँटा सभी की आँख का तब से बना हुआ ||
मंज़ूर यार को न मेरा फ़ैसला हुआ |
साझे के कारोबार का ये सिलसिला हुआ ||
क्या कोई अब मिलेगा यहाँ पर तुम्हे सुबूत |
गुज़रा है इतना वक़्त ये जब हादिसा हुआ ||
क्यूँ अब तलक मिली नहीं मुज़रिम को वो सज़ा |
मुद्दत हुई है जिसका कभी फ़ैसला हुआ ||
अब आ गया तुम्हारी पनाहों में आख़िरश |
मैं बेवफ़ा नहीं था तुम्हे वहम सा हुआ ||
तूफ़ान सा उठा दिया दिल ने शरीर में |
दो-चार पल को आपसे मैं क्या जुदा हुआ ||
जो उनके हुस्न पर कहा है एक –आध शेर |
‘सैनी’ तुम्हारा शेर वही काम का हुआ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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