शिकायत मिल रही है रोज़ मुझको दिल दीवाने से |
नहीं तुम बाज़ आते हो अभी भी आज़माने से ||
मुझे भी पूछना है आज तो बस इस ज़माने से |
भला क्या फ़ायदा है इश्क़ वालों को सताने से ||
तुम्हारी लखनऊ आने की दावत मान लूं कैसे |
शुगर जाती है बढ़ मेरी दशहरी आम खाने से ||
जलाता है लहू मजदूर दिन भर धुप में जल कर |
जलन क्यूँ आपको है उसके बिरयानी पकाने से ||
उन्हें बाज़ार जाना है ज़रा सामान ला ना है |
उन्हें तो चाहिए छुट्टी किसी भी बस बहाने से ||
वजूद अपना हमेशा दुन्या में हम छोड़ जाते हैं |
मिटा क्या आज तक कोई किसी के भी मिटाने से ||
हमेशा दोस्ती रक्खी उन्होंने बिजलियों से ही |
रहे जलते हमेशा ही हमारे आशियाने से ||
तुम्हारे रूठ जाने से बिगड़ जाती हैं तदबीरें |
मेरा हर काम बनता है तुम्हारे मान जाने से ||
मुहब्बत की नहीं ‘सैनी’ने जिससे पूछ लो चाहे |
उसे फ़ुर्सत कहाँ है पेट भर रोटी कमाने से ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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