तुम्हारी हर अदा का ज़िक्र मेरी शायरी में है |
बड़ी तफ़्सील से लेकिन बड़ी ही सादगी में है ||
गुलों की अहमियत तो बस हमेशा ताज़गी में है |
गुलों को तोडियेगा मत शराफ़त तो इसी में है ||
अगर ये इश्क़ न होता तो मैं किस काम का होता |
मेरे हर काम की सूरत तुम्हारी आशिक़ी में है ||
किसी ने भी दिया मुझको न अब तक इश्क़ का मौक़ा |
कमी बस एक छोटी सी ये मेरी ज़िंदगी में है ||
किये दर पर बहुत सिजदे तुम्हारे आज तक लेकिन |
लगा अब ध्यान मेरा बस ख़ुदा की बंदगी में है ||
तुम्हारी बात ही कुछ और है जो तुम पे शैदा हूँ |
तुम्हारे जैसी सच्चाई यहाँ क्या हर किसी में है ||
हसीनो से ,पुलिस वालों से ,नेताओं से जीवन में |
भलाई दोस्ती में है न इनकी दुश्मनी में है ||
अधूरा हर तसव्वुर है तुम्हारे बिन मेरा तो अब |
मेरे हर काम में बरकत तुम्हारी हाज़िरी में है ||
जहाँ जल्वा ज़रा देखा फिसल जाता वहीं ‘सैनी’|
बुरी पर ये बीमारी आज तो हर आदमी में है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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