मुबारक हो फ़लक़ तुझको मुझे कमतर ही रहने दे |
मैं पत्थर ठोकरों का हूँ मुझे पत्थ र ही रहने दे ||
बड़ी मुश्किल से मिल पायी तेरे दीदार की लज़्ज़त |
इसे तू छीन मत मुझसे इसे मुझ पर ही रहने दे ||
वो कहता है वफ़ा मेरी मैं कहता हूँ वफ़ा मेरी |
वफ़ाओं को तू आपस में यूँ टकराकर ही रहने दे ||
किया कुछ भी नहीं पर नाम उनका सुर्ख़ियों में है |
बंधा है ताज उसके सर तो उसके सर ही रहने दे ||
निकल कर मैं चलूँ घर से निकल कर तू भी घर से आ |
चला आ दोस्त बनके दुश्मनी घर पर ही रहने दे ||
घिसट कर जा तो सकता है कहीं भी अपनी मर्ज़ी से |
परिंदा है अपाहिज क़ैद से बाहर ही रहने दे ||
तुम्हारे चाहने वालों की लम्बी लिस्ट है फिर तो |
यहीं पर ठीक हूँ मुझको तो बस दीग़र ही रहने दे ||
अभी तालीम लेकर इनको मुस्तक़बिल बनाना है |
ज़माने से नयी नस्लों को बस बच कर ही रहने दे ||
मेरे दुश्मन के हाथों में तो बस खंजर ही रहने दे ||
धरम है शायरी मेरा करम है शायरी मेरा |
ये तख़्त -ओ -ताज तू ही रख मुझे शायर ही रहने दे ||
बड़े आराम का है ‘सैनी’ मेरा घर ये पुश्तैनी |
बना मत इसका तू बँगला मेरा घर घर ही रहने दे ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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