Friday, 27 April 2012

पत्थर ही रहने दे


मुबारक हो  फ़लक़  तुझको मुझे  कमतर   ही  रहने  दे |
मैं   पत्थर   ठोकरों   का  हूँ  मुझे  पत्थ र  ही  रहने  दे ||

बड़ी  मुश्किल  से  मिल  पायी  तेरे  दीदार  की लज़्ज़त |
इसे  तू  छीन  मत  मुझसे  इसे  मुझ  पर   ही  रहने  दे ||

वो   कहता   है   वफ़ा   मेरी   मैं   कहता   हूँ  वफ़ा  मेरी |
वफ़ाओं   को  तू  आपस  में  यूँ  टकराकर  ही  रहने  दे ||

किया  कुछ  भी  नहीं  पर  नाम  उनका  सुर्ख़ियों  में  है |
बंधा  है  ताज  उसके  सर  तो  उसके  सर  ही   रहने  दे ||

निकल कर मैं चलूँ घर से निकल कर तू भी घर से आ |
चला  आ दोस्त  बनके  दुश्मनी घर  पर  ही  रहने  दे  ||

घिसट कर जा तो सकता है कहीं भी अपनी  मर्ज़ी  से |
परिंदा   है   अपाहिज    क़ैद   से  बाहर  ही   रहने  दे ||

तुम्हारे चाहने वालों की  लम्बी  लिस्ट  है  फिर   तो |
यहीं पर ठीक हूँ मुझको तो बस  दीग़र  ही   रहने  दे ||

अभी तालीम लेकर इनको  मुस्तक़बिल  बनाना  है |
ज़माने से नयी नस्लों को बस बच कर  ही  रहने  दे ||

 सम्भाला  है  क़लम  मैंने  क़लम  हथियार  है  मेरा |
मेरे दुश्मन के हाथों में तो   बस  खंजर  ही  रहने  दे ||

धरम   है   शायरी    मेरा   करम   है   शायरी    मेरा |
ये तख़्त -ओ -ताज तू ही रख मुझे शायर ही रहने दे ||

बड़े   आराम    का   है   ‘सैनी’ मेरा  घर  ये  पुश्तैनी |
बना  मत  इसका  तू बँगला मेरा घर घर ही रहने दे ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 


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