हमारी भी है कुछ ग़लती तुम्हारी भी है कुछ ग़लती |
बजा कर देखिये इक हाथ से ताली नहीं बजती ||
ज़बां पर कुछ है ,दिल में कुछ है चेहरे पर मुखौटा है |
कभी एसे बशर से एक पल अपनी नहीं पटती ||
सदाक़त से नहीं कुछ आपने जब वास्ता रक्खा |
वगरना आप पर उंगली ज़माने की नहीं उठती ||
सियासतदाँ अगर कुर्सी का दामन छोड़ देते तो |
ये कौमें बेवजह आपस में क्योंकर रोज़ ही लडती ||
वजह है कुछ न कुछ इसके तो पीछे सोचना होगा |
गरानी देखिये क्यों दिन -ब –दिन ही जा रही बढ़ती ||
बड़े ही नासमझ हैं वो न समझाने से मानेंगे |
हथेली पर हमें मालूम है सरसों नहीं जमती ||
न जाने भूख है कैसी ये ‘सैनी’को अदब की अब |
करो कितनी भी कोशिश जो मिटाए से नहीं मिटती ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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