Wednesday, 23 May 2012

मेरे हमसफ़र


तू जो जा रहा है यूँ  रूठ  कर  तुझे  क्या  हुआ  मेरे  हमसफ़र |
कुछ तो मुझे भी हो अब ख़बर तुझे क्या हुआ  मेरे  हमसफ़र ||

तेरा  ध्यान   है  जो  इधर  उधर तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र | 
सब  की  लगी  तुझ पर नज़र तुझे क्या हुआ  मेरे  हमसफ़र || 

तू  जो  कर  रहा  है  अगर  मगर तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र | 
सोया  नहीं  जो  तू  रात  भर तुझे   क्या  हुआ  मेरे  हमसफ़र || 

कुछ तो बता क्यूँ हैं चश्म -ए- तर तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र | 
हैं  सवाल  अब  मेरी  ज़ात  पर तुझे  क्या  हुआ  मेरे हमसफ़र || 

है  जो  ‘सैनी’ तेरे  ही  साथ  ग़र तुझे  क्या  हुआ  मेरे हमसफ़र |  
क्यूँ  सता  रहा  तुझे  आज  डर तुझे  क्या  हुआ  मेरे हमसफ़र ||  

डा० सुरेन्द्र  सैनी   

Thursday, 10 May 2012

तुम जो अपने


तुम जो अपने चेहरे को  बार -बार  ढकते  हो |
यार  कैसे  बुज़दिल  हो  आईने  से  डरते  हो ||

तलि्ख़यां तो पैदा की पहले ख़ुद फ़ज़ाओं  में |
अब खुली हवाओं के  प्यार  को  तरसते  हो ||

गीत  जिनमें  गाते  थे  हुस्न  की   बड़ाई  के |
अब क्यूं  उन रकीबों की हरकतों से डरते हो ||

तज़किरे जो करते हो   अपनी ही शराफ़त के |
वो भी कम नहीं तुमसे जिनसे बात करते हो ||

उनको जो शिकायत है देखता है क्यों तुमको |
‘सैनी’के लिए तुम तो कह दो बस सवंरते हो ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

साक़िया तेरा दर


दर्द -ओ -ग़म जब मिले इस जहां से साक़िया तेरा दर याद आया |
इक हवेली से रुसवा हुए तो  हमको  अपना  वो  घर  याद  आया ||

जब भी गुज़रा मैं उस रहगुज़र से जिससे जुडती है तेरी गली  भी |
जो न मिलने की खाई क़सम थी रोज़ उसका ही  डर  याद  आया ||

आसमाँ  की  बलंदी  को  छू  कर  मैंने समझा  ख़ुदा  हो  गया  मैं |
जब  ज़मीं  पे  गिरा  तो  ख़ुदा  फिर  देर  से  ही मगर याद आया ||

गावँ में  जब गया आज अपने अजनबी सी लगी  सब  की  सूरत |
छावँ में जिसकी जमती थी महफ़िल वो पुराना शजर याद आया ||

सब सुनाते कलाम अपना -अपना लोग देते थे  इस्लाह  सबको |
आज  ‘सैनी ’को  सूने  अदब  में  शायरों  का   हुनर  याद आया ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी   

Monday, 7 May 2012

शुभागमन


आपका   आज    शुभागमन |
शुष्क अधरों को है आचमन ||

मेरे   छंदों   के  आकार   में |
व्याप्त हैं आप  ही के  सपन ||

प्यास की अन्जुरी के लिए  |
खोल दो मद भरे  ये  नयन ||

रूपसी    के   घने   केश   हैं |
या घटाओं का  आवागमन ||

ये   निराली छवी  देख कर |
आज  'सैनी' करे  है नमन ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 


Sunday, 6 May 2012

बाप की लोरी


झूठ  –ओ -फ़रेब की कहानी नहीं आती |
सो जा मेरे बच्चे मुझे लोरी नहीं  आती ||

कितने घूँट मैंने कडूवाहटों    के  पिए  हैं |
यूँ ही तो मिज़ाज में  तल्ख़ी  नहीं  आती ||

जिसने जिम्मेदारियां घुट्टी में पी ली हों |
एसे  आदमी  पे  तो जवानी  नहीं  आती ||

आज की  कमाई से कल का चुका आये |
जोड़ में उधारी  के  ग़लती   नहीं  आती ||

दौड़ में तरक्क़ी की पीछे रहता आया हूँ |
भाई मेरे मुझको  बेइमानी नहीं   आती ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Thursday, 3 May 2012

आदमज़ाद


चाहे    जितने   बाद  मिले |
अच्छा  आदमज़ाद  मिले ||

दहशत  से   आज़ाद  मिले |
हर   कोई   आबाद   मिले ||

फ़स्लें  फन  की  खूब  उगें |
एसी  उम्दा   खाद    मिले ||

जायज़ सबको आज अभी |
सरकारी    इमदाद   मिले ||

हो  फल   वाले  पेड़  सभी |
सब को मीठा स्वाद मिले ||

अय्याशों  के  देख   लिए |
सब के घर बरबाद मिले ||

अच्छा   कोई   शेर  कहे |
तो ‘सैनी’को  दाद  मिले ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Wednesday, 2 May 2012

मुफ़लिसी का भंवर


भंवर  से मुफ़लिसी के आज तक उबरा नहीं ‘सैनी’|
मगर सच ये भी है कि टूट कर बिखरा  नहीं ‘सैनी’|| 

लगे रहते हैं कोशिश में   मुझे  बरबाद  करने  की |
पका कर खालेंगे मुझको अरे बकरा   नहीं  ‘सैनी’|| 

शिकायत एक ही रहती है मेरी  जान-ए-जाना को |
अभी तक इश्क़ में  उलझा हुआ सुधरा नहीं ‘सैनी’|| 

कहा   जो   आपसे   होगा   भलाई    में  कहा  होगा |
अगर ख़ुद ने भी ग़लती की है तो मुकरा नहीं ‘सैनी’|| 

बड़ा  ही  नर्म  दिल  उसका हमेशा  ही वो लोगों की |
हिमाकत  पे  शरारत  पे  कभी  बिफरा नहीं ‘सैनी’|| 

बड़ी ख़्वाहिश है कहने की मगर  वो कह नहीं पाता |
अदब में आज तक भी इस लिए निखरा नहीं‘सैनी’|| 

कोई इसरार करदे तो  वो  झट  से  मान  जाता  है |
बुरा  थोड़ा  सही  है  पर  गया  गुज़रा  नहीं  ‘सैनी’|| 

डा० सुरेन्द्र  सैनी